सबेरे जगता हूं (बाल कविता)

सबेरे जगता हूं (बाल कविता)
मात्राएं -: १६


मैं  रोज  सबेरे  जगता हूं
मां संग विद्यालय जाता हूं।


रोज साफ़ - सुथरा होता हूं
शिक्षकों को प्रणाम करता हूं।


मां रोज नाश्ता बनाती है
मुझे शाम- सुबह पढ़ाती है।


गुरु जी पढ़ना सिखाता है
हाथ से लिखना सिखाता है।


विद्यालय हमारा मंदिर हैं
यह तो बच्चों की जंजीर हैं।


रविवार की छुट्टी मिलते हैं
सब बच्चों मस्ती में रहते हैं।



      शायर कुमार "अंचल"
          अररिया, बिहार
         7488139688