विरह कुंड में हुए हवन
सब कुछ तुमको सौंप दिया
मिला ना तुम से अपनापन।
नेह का नीड़ उड़ा ले गयी
स्वारथ की जो बही पवन।
पागल करके हमको कहती
इस पागल का करो जतन।
खुश हैं हम ओस की बूंदों में
सागर संग तुम, रहो मगन।
प्रेम भाव जो उठे थे मन में
अब विरह कुंड में हुए हवन।
सब कुछ तुमको सौंप दिया
मिला ना तुम से अपनापन।
फिर से तुम्हारी ही यादों का
जो बादल घिर-घिर आया है।
मैं सोचा इस पल को जी लूं
कितनों ने पत्थर लहराया है।
आशीष तिवारी निर्मल
रीवा मध्यप्रदेश
9399394911